UTTRAKHAND TUNNEL RESCUE 28 NOV – काफी कश्मकश के बाद उत्तराखंड के टनल में फंसे 41 मजदूरों को सफ़लतापूर्वक किया गया रेस्क्यू।

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UTTRAKHAND TUNNEL RESCUE 28 NOV – काफी कश्मकश के बाद उत्तराखंड के टनल में फंसे 41 मजदूरों को सफ़लतापूर्वक किया गया रेस्क्यू।

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UTTRAKHAND TUNNEL RESCUE 28 NOV – उत्तराखंड की 4.5 किमी लंबी सिल्क्यारा- डंडारगांव टनल में फंसे 41 मजदूरों के लिए खुली हवा में सांस लेने का दिन आ ही गया। रेस्क्यू ऑपरेशन में 17वें दिन 12 रेट माइनर्स की टीम ने अपने हाथों से होरिजेंटल ड्रिलिंग कर मजदूरों को निकाल लिया गया।ये मजदूर 12 नवंबर की सुबह करीब 5:30 बजे सिल्क्यारा एंट्री प्वाइंट से 250 मी. अंदर मलबा गिर जाने के बाद से टनल में फंसे हुए थे। दुनियाभर की आधुनिक मशीनें 45 मी. ड्रिल करने के बाद जब बंद हो गईं, तब रेट माइनर्स को बुलाया गया। उन्होंने 21 घंटे में 15 मी. मलबा साफ कर मजदूरों के बाहर आने के लिए पाइप डाल दिया।

UTTRAKHAND TUNNEL RESCUE 28 NOV

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UTTRAKHAND TUNNEL RESCUE 28 NOV – फिर एनडीआरएफ के जवान एक- एक कर पाइप से होते हुए मजदूरों तक पहुंचे। ये पाइप जमीन से से करीब 3 मी. ऊपर है। ऐसे में जवानों को जमीन से पाइप के मुहाने तक एक रैंप बनाना है, क्योंकि यदि मजदूरों को सीधे पाइप में डालेंगे तो ऊपर से मलबा गिरने का डर है। इसलिए सारे कदम बहुत सोच-समझ कर उठाए जा रहे हैं। फिलहाल 17 दिन में 16 बाधाएं पार कर मजदूरों तक पाइप पहुंचा ही दिया।

UTTRAKHAND TUNNEL RESCUE 28 NOV – उधर, मजदूरों की प्राथमिक जांच के लिए टनल के भीतर ही छोटा अस्पताल बनाया गया है। जबकि टनल के बाहर 30 एंबुलेंस पहले से ही तैनात कर दी थीं। पांच दिन पहले जब अमेरिकी ऑगर मशीन बंद पड़ गई, तब दिल्ली की टीईएसपीएल (ट्रेंचलेस इंजीनियरिंग सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड) फर्म ने अपनी रैटहोल माइनर्स की टीम बुलाई। इसमें अधिकांश यूपी के झांसी जिले के लोग हैं। इस टीम ने ही पहले टनल से मैटल बॉडी साफ की, फिर दो-दो घंटे में टनल में घुसकर मलबा निकाला।

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UTTRAKHAND TUNNEL RESCUE 28 NOV- पाइप के माध्यम से मजदूरों को खाने-पीने की जाती रही सामग्री –

12 नवंबर को सुरंग में जब मजदूर फंसे तो सुपरवाइजर गबर सिंह नेगी को पानी भरा दिखा। उन्होंने पानी निकालने के लिए पंप चला दिया। पाइप का दूसरा छोर मलबे के बाहर रेस्क्यू टीम के पास खुलता है, इसलिए पंप की आवाज रेस्क्यू टीम को मिली तो उन्होंने एहसास हो गया कि मजदूर जिंदा हैं। ये पाइप चार इंच का था।

UTTRAKHANDTUNNEL RESCUE 28 NOV –

मजदूरों ने अंदर से आवाज दी तो पाइप से हल्की आवाज बाहर आई। यही पाइप बातचीत का माध्यम बनी। फिर मजदूरों को इसी पाइप से चने, बिस्किट भेजे गए। 20 नवंबर को एक 6 इंच का पाइप मलबे में डाला गया। वो आराम से मजदूरों तक पहुंच गया। इसी के जरिए सॉलिड फूड, जूस आदि भेजे गए। तब जाकर 9 दिन बाद मजदूरों ने खाना खाया। 21 नवंबर को 800 एमएम यानी 32 इंच चौड़े पाइप अंदर भेजे गए, क्योंकि 900 एमएम के पाइप आगे नहीं बढ़ रहे थे। यही पाइप तीसरी लाइफ लाइन बने, क्योंकि इनमें रेट माइनर्स आसानी से टनल खोद सके।

UTTRAKHAND TUNNEL RESCUE 28 NOV- रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान मशीन बन्द –

UTTRAKHAND TUNNEL RESCUE 28 NOV – ढाई फीट चौड़े पाइप में घुसना, 45 मी. अंदर जाकर इलेक्ट्रिक कटर से ऑगर मशीन के शॉफ्ट में फंसे सरिए छोटे-छोटे टुकड़ों में निकालना, फिर ऑगर मशीन की ड्रिल को एक-एक कर गैस कटर से काटकर अलग करना और इतना सब सामान 45 मी. के पाइप से बाहर निकालना। ये काम आसान नहीं था। पहले हम लोग एनडीआरएफ जवानों के आगे बढ़ने का इंतजार कर रहे थे। लेकिन, जवानों की हाइट-पर्सनालिटी ज्यादा थी। वे पाइप में फंस जाते, इसलिए मैं और मेरे साथी बलविंदर यादव ने हां कर दी। हम दोनों दिल्ली ट्रेंसलेस इंजीनियरिंग कंपनी में हैं और ज्यादातर समय सुरंगों में ही काम करते हैं। हम हिम्मत करके आगे बढ़े। एक हाथ में पोर्टेबल गैस कटर मशीन और दूसरे में पानी की दो बोतल लेकर हम कोहनी और घुटनों के बल पाइप में घुस गए।

UTTRAKHAND TUNNEL RESCUE 28 NOV – रेट माइनर्स की लगातार मेहनत –

UTTRAKHAND TUNNEL RESCUE 28 NOV

24 नवंबर को जब 25 टन की अमेरिकी ऑगर मशीन रुकी, उस वक्त 60 मी. के मलबे में 45 मी. तक 800 एमएम का पाइप डाला जा चुका था। आखिरी के 15 मी. सबसे चुनौतीपूर्ण थे, क्योंकि हॉरिजेंटल ड्रिलिंग बंद हो चुकी थी।

UTTRAKHAND TUNNEL RESCUE 28 NOV – आखिर कोयला खदानों में खुदाई और सीवेज टनल की सफाई के परंपरागत तरीके रेट होल माइनिंग का आइडिया आया। रेट माइनिंग यानी खुदाई में चूहे जो तरीका अपनाते हैं, ठीक वही। इसमें तीन से चार मजदूर माइनिंग में जुटते हैं। 800 एमएम से भी छोटे पाइप में जाकर वो छोटे फावड़े को हाथ से चलाते, खुदाई करते और आगे बढ़ते हैं। मेघालय में इस तकनीक से खदानों में घुसकर लोग 2-3 घंटे में टोकरी भर कोयला निकाल लाते थे।

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