MAHESHPUR SURGUJA – आइये जानते हैं छ:ग के ऐतिहासिक स्थानों में से एक रेण नदी के तट पर स्थित ‘महेशपुर के बारे में।

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MAHESHPUR SURGUJA – आइये जानते हैं छ:ग के ऐतिहासिक स्थानों में से एक रेण नदी के तट पर स्थित ‘महेशपुर के बारे में।

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MAHESHPUR SURGUJA – प्राकृतिक सम्पदाओं से युक्त भारत का छ:ग प्रदेश अपने इतिहास के कारण भी चर्चा में रहता है। इन्ही में महेशपुर भी है। जो कि प्रदेश के कई ऐतिहासिक स्थानों में से एक है। MAHESHPUR SURGUJA – मौर्यकालीन नाट्यशाला और अभिलेख के लिए विख्यात रामगढ़ के सन्निकट रेण नदी के तटवर्ती क्षेत्र में 8वीं सदी ईसवी से 13वीं सदी ईसवी के मध्य कला संस्कृति का अभूतपूर्व उत्कर्ष हुआ। इस काल के स्थापत्य कला के भग्नावशेष महेशपुर और कलचा-देवगढ़ तक विस्तृत हैं। शैव, वैष्णव तथा जैन धर्म से संबंधित कलाकृतियां और प्राचीन टीलों की संख्या की दृष्टि से महेशपुर पुरातात्त्विक दृष्टिकोण से काफ़ी महत्त्वपूर्ण है।

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MAHESHPUR SURGUJA

MAHESHPUR SURGUJA – कहाँ है ?

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“महेशपुर” प्रदेश के एक बड़े सम्भाग सरगुजा के सरगुजा जिले में स्थित अम्बिकापुर शहर के बिलासपुर रोड के पास स्थित है। जिले के तसशील मुख्यालय उदयपुर से उत्तर पूर्व की ओर लगभग 14 कि.मी की दूरी पर रेण नदी के तट पर स्थित है। सरगुजा जिले के अम्बिकापुर से जुड़े सड़क मार्ग से यह जुड़ा हुआ है जहां से यह लगभग 40-45 कि.मी की दूरी पर स्थित है।

MAHESHPUR SURGUJA – का कलचुरी राजा द्वारा निर्माण –

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इस स्थल का कलचुरी राजा द्वारा निर्माण कराया गया था। समीप में जो रेण नदी बह रही है। इसके दक्षिण में जो महेशपुर स्थल है इसमें शैव और वैष्णव की मंदिरों का, मूर्तियों का एक साथ मिलकर के समन्वय किया गया है। यहां से प्राप्त शिलालेख के आधार पर उसमें 3 राजाओं का नाम भी है। वह शिलालेख वर्तमान में अम्बिकापुर के संग्रहालय में मौजूद है।

MAHESHPUR SURGUJA – की प्रकृतिक छटा –

महेशपुर का प्राकृतिक सौंदर्य, पुरानिधि और जनजातीय संस्कृति पर्यटकों को सम्मोहित करता है। शैव, वैष्णव एवं जैन धर्म से संबंधित कलाकृतियां तत्कालीन धार्मिक स्थिति, तक्षण कौशल और मौशल और मौलिक कल्पना से सुंदर उदाहरण हैं। इसके माध्यम से लोक जीवन में व्याप्त भक्तिधारा, शास्त्रीय बोध और शिल्पीय दक्षता का ज्ञान होता है। भागवत धर्म से संबृंधित कृष्ण लीला युक्त पट्ट नाटकीयता से ओतप्रोत है। इन कलाकृतियों के माध्यम से श्रृंगार, परिधान, आभूषण एवं अन्य सांस्कृतिक पक्षों पर प्रचुर प्रकाश पड़ता है। लौकिक प्रतिमाओ में शील, सौंदर्य तथा लावण्य दर्शनीय है। महेशपुर से प्राप्त अवशेष कला शैली की दृष्टि से शोधपरक हैं। सरगुजा ज़िले की पुरातत्त्वीय धरोहरों की श्रृंखला- रामगढ़, डीपाडीह, हर्राटोला, कलचा, भदवाही और महेशपुर में विस्तृत है। भारतीय कला के इतिहास में सरगुजा ज़िले के पुरातत्त्वीय धरोहर अध्ययन के लिए उत्खनन से ज्ञात नवीन पुरास्थल हैं। महेशपुर से उत्खनित पुरावैभव दक्षिण कोसल की स्थापत्य परंपरा के स्वर्णिम युग का एक नया अध्याय है। जनआस्था और पुरातन वैभव से संपन्न महेशपुर पर्यटन के उल्लास से सुवासित जीवंत दर्शनीय स्थल है।

MAHESHPUR SURGUJA – में स्थित ऐतिहासिक शिव मंदिर –

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रेण नदी के तट पर स्थित शिवलिंग युक्त एक विशाल आकार के टीले पर उत्खनन से ताराकृति भू-न्यास योजना पर निर्मित मंदिर का अवशेष प्रकाश में आया है। उत्खनित मंदिर के विमान का जगती प्रस्तर निर्मित है और अधिष्ठान से शिखर पर्यंत उर्ध्वविन्यास पकाये गये ईटों द्वारा निर्मित था। परवर्ती काल में मंडप का विस्तार किया गया है। इस स्थल के उत्खनन से प्राप्त विविध स्थापत्य खंड, भग्न शैव द्वारपाल तथा गरुड़ युक्त सिरदल का मध्य भाग संरचना के काल निर्धारण की दृष्टि से विशेष उल्लेखनीय हैं। पश्चिमाभिमुख यह शिव मंदिर लगभग 8वीं सदी ईसवी में निर्मित है। दक्षिण कोसल में प्रचलित ताराकृति भू-न्यास योजना पर अधिष्ठान से शिखर पर्यन्त ईंटों के उर्ध्व विन्यास युक्त यह भारी-भरकम मंदिर निरंतर उपेक्षित होने से विशाल वृक्षों की अधिकता से ढह गया। इस परिसर के अंतर्गत परवर्ती काल के निर्मित छोटे-छोटे भग्न मंदिरों की संरचनाएं झाड़ियों में दबे टीलों से अनावृत किए गए हैं।

MAHESHPUR SURGUJA – में मीले ऐतिहासिक मंदिरों के अवशेष –

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महेशपुर की पुरातत्त्वीय धरोहरों की विस्तृत श्रृंखला को प्रकाश में लाने के लिए वर्ष 2008 में रेण नदी के किनारे स्थित टीले पर, तत्पश्चात् 2009 में बड़का देउर नामक टीले पर किए गए उत्खनन से विभिन्न मंदिरों के अवशेष तथा प्रतिमाएँ प्राप्त हुई हैं।

महेशपुर में उत्खनन से दक्षिण कोसल की ऐतिहासिक स्थापत्य कला पर विशेष प्रकाश पड़ा है। महेशपुर में 2008 एवं 2009 में संपादित उत्खनन कार्य से मुख्य रूप से भग्न मंदिरों की संरचनाएं अस्तित्व में आई हैं।

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