DIWALI SPECIAL – मर्यादापुर्षोत्तम भगवान श्री राम के विजय के अतिरिक्त दिवाली पर और क्या-क्या मान्यताएं हैं। आइये जानते हैं इस दिवाली स्पेशल में।

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DIWALI SPECIAL – दीपोत्सव के पावन अवसर पर हर तरफ खुशियों का महकता वातावरण हो जाता है। यह पर्व सभी पर्वों में सबसे बड़ा माना जाता है क्योंकि पांच दिन तक इस त्योहार की खुशियां बनी रहती है और माह भर पूर्व से इसे मनाने की तैयारी आरंभ हो जाती है। हर त्योहार की तरह इस पर्व की भी पौराणिक कथा है। यूं तो मानने के लिए प्रमुख रूप से भगवान राम द्वारा अहंकारी रावण का वध करने पश्चात अयोध्या आगमन के अवसर पर खुशी एवं उल्लास रूप में इसे मनाया जाता है। परन्तु इसके अतिरिक्त भी कई ऐसी मान्यताएं हैं, कई ऐसी कहानियां हैं जिसके अवसर पर इस त्योहार को मनाया जाता है।

2) राम के बजाय गणेश और लक्ष्मी की क्यों होती है पूजा?

DIWALI SPECIAL – हमारे मन में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि जब राम के अयोध्या वापस लौटने की खुशी में दिवाली का पर्व मनाया जाता है तो उस दिन विशेष रूप से राम, सीता और लक्ष्मण की पूजा होनी चाहिये, जबकि उत्तर भारत में विशेष रूप से गणेश और लक्ष्मी की पूजा की जाती है। इसका क्या कारण है? आपको बता दें कि हिंदू धर्म में ऐसा माना जाता है कि जब माता लक्ष्मी समुद्र मंथन से प्रकट हुईं और बैकुंठ जाकर भगवान के गले में माला पहनाई तो बैकुंठवासियों ने अपने-अपने घरों में दीप जलाकर के लक्ष्मी-नारायण के विवाह का उत्सव मनाया था। उसके बाद जब वही बैकुंठवासी मृत्युलोक में आए तो दिवाली का पर्व मनाना शुरू किया। तब से दिवाली का पर्व मनाया जाता है और दिवाली के दिन लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है। वहीं, गणेश भगवान की पूजा के पीछे की मान्यता यह है कि जिस व्यक्ति के पास ज्ञान होता है उसी के पास धन भी आता है। इसलिये सबसे पहले गणेश जी का पूजन करके फिर लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है।

2) DIWALI SPECIAL – उत्तर भारत की दिवाली –

उत्तर भारत के अंतर्गत उत्तर प्रदेश, जम्मू एवं कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और दिल्ली के क्षेत्र आते हैं। उत्तर भारत में दिवाली का त्यौहार भगवान राम की विजयी गाथा और श्री कृष्ण द्वारा शुरू की गई नई परंपरा व उत्सव से जुड़ा हुआ है। यहाँ पर दिवाली का पर्व पाँच दिनों तक मनाया जाता है, जिसमें पहला दिन धन के देवता कुबेर और भगवान धन्वंतरि से जुड़ा है, जिसे धनतेरस कहते हैं; दूसरा दिन नरक चतुर्दशी का दिन है, इसे छोटी दिवाली भी कहते हैं। इस दिन श्री कृष्ण ने नरकासुर नाम के राक्षस का वध किया था; तीसरा दिन माता सीता और श्री राम के अयोध्या वापस आने से जुड़ा है। इसे बड़ी दिवाली कहते हैं। बड़ी दिवाली के दिन सभी लोग नए कपड़े पहनकर अपने-अपने घरों में शाम के समय गणेश और लक्ष्मी का पूजन करते हैं। फिर दीप जलाने के बाद पटाखे जलाते हैं। चौथा दिन गोवर्धन पूजा यानी श्री कृष्ण की लीलाओं से जुड़ा है तो वहीं पांचवा दिन भाई दूज के रूप में मनाया जाता है। असल में उत्तर भारत में इस त्यौहार की शुरुआत दशहरे के साथ ही हो जाती है।

3) दक्षिण भारत की दिवाली –

दक्षिण भारत के अंतर्गत आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, पुडुचेरी, लक्षद्वीप और अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह के क्षेत्र आते हैं। दक्षिण भारत में दिवाली का पर्व केवल दो दिनों तक मनाया जाता है, जिसमें पहले दिन मनाए जाने वाले नरक चतुर्दशी का विशेष महत्त्व है। नरक चतुर्दशी के दिन यहाँ के लोग पारंपरिक तरीके से स्नान यानी तेल से स्नान करते हैं। तेल से स्नान इसलिये शुभ माना जाता है क्योंकि यहाँ के लोगों का मानना है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने नरकासुर राक्षस को मारने के बाद खून के धब्बे हटाने के लिये तेल से स्नान किया था। वहीं, दूसरे दिन दीप जलाकर, रंगोली बनाकर दिवाली मनाते हैं। यहाँ पर लक्ष्मी और नारायण की पूजा होती है। दक्षिण में दिवाली वाले दिन एक अनोखी परंपरा मनाई जाती है जिसे ‘थलाई दिवाली’ कहते हैं। थलाई दिवाली के अनुसार, नवविवाहित जोड़े लड़की के घर जाते हैं जहाँ उनका भव्य स्वागत किया जाता है और घर के सभी बड़े-बुजुर्ग उन्हें आशीर्वाद एवं उपहार देते हैं। फिर वह जोड़ा दिवाली के शगुन के लिये एक पटाखा जलाता है और सभी लोग मिलकर मंदिर में भगवान के दर्शन के लिये जाते हैं। इसके अलावा, आंध्रप्रदेश में हरिकथा का संगीतमय बखान होता है और सत्यभामा की मिट्टी की मूर्तियों की पूजा होती है। वहीं कर्नाटक में पहला दिन अश्विजा कृष्ण चतुर्दशी (जिसे हम नरक चतुर्दशी कहते हैं) और दूसरा दिन पदयमी बाली के नाम से प्रचलित है। वहाँ पर दूसरे दिन राजा बली से संबंधित कहानियों का उत्सव होता है और महिलाएं गोबर से घर को लीपकर, रंगोली बनाकर दियों से सजाती हैं।

4) आर्य समाज की दिवाली –

आर्य समाज के लोगों की दिवाली मनाने के पीछे की मान्यता यह है कि, कार्तिक मास की अमावस्या के दिन आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद को निर्वाण की प्राप्ति हुई थी। इसी कारण आर्य समाज के लोग दिवाली का पर्व अति उत्साह के साथ मनाते हैं। तो हमनें देखा कि एक ही त्यौहार को मनाने के पीछे पूरे भारत में अलग-अलग धारणाएँ और तौर-तरीके हैं, लेकिन हमें इस बात पर भी गौर करना चाहिये कि इतनी विविधताओं के बावजूद कुछ चीजें जैसे अपने घर को दीपों से सजाना, अपने परिवार और दोस्तों को दिवाली कार्ड व उपहार देना, अपने प्रियजनों के साथ समय बिताना व उनके साथ में स्वादिष्ट भोजन का आनंद लेना और अपने अराध्य का स्मरण करके जीवन को बेहतर बनाने का संकल्प लेना इत्यादि सभी धर्मों व सभी स्थानों पर समान है यानी हम भिन्न होते हुए भी एक हैं। भारत में मनाए जाने वाले सभी त्यौहारों में दीपावली का सामाजिक और धार्मिक दोनों ही दृष्टि से बहुत महत्त्व है। असत्य पर सत्य की विजय का यह त्यौहार हम सबको अंधेरे से उजाले की ओर जाने की प्रेरणा देता है अर्थात यह पर्व उपनिषदों में कहे गए ‘तमसो मा ज्योतिर्ग्मय’ का आह्वान करता है।

5) जैन धर्म की दिवाली-

जैन धर्म के लोगों की दिवाली मनाने के पीछे यह मान्यता है कि, इसी दिन जैन धर्म के 24वें तीर्थकर भगवान महावीर को बिहार के पावापुरी में निर्वाण प्राप्त हुआ था। जैन लोग दिवाली के त्यौहार को भगवान महावीर के निवार्ण दिवस के रूप में मनाते हैं। जैन धर्म के लोग इस दिन विधि-विधान से महावीर स्वामी की पूजा करते हैं और निर्वाण लाडू (नैवेद्य) का प्रसाद चढ़ाते हैं। उसके बाद मंदिरों को दीपकों से सजाया जाता है। इसके अलावा, सायंकाल के समय मंदिर में दीपमालिका की जाती है। दीपमालिका करते समय मन में यह भावना होती है कि हम सभी को सच्चे ज्ञान की प्राप्ति हो और जीवन में अंधकार का नाश हो। जैन धर्म में भी दिवाली के दिन माँ लक्ष्मी व माँ सरस्वती की पूजा की जाती है। इन दोनों माताओं का जैन धर्म में प्रमुख स्थान हैं क्योंकि माँ लक्ष्मी को निर्वाण अर्थात मोक्ष की देवी जबकि माँ सरस्वती को कैवल्यज्ञान अर्थात विद्या की देवी माना जाता है।

DIWALI SPECIAL – हिन्दू धर्म के अनुसार निम्न मान्यताओं से भी जोड़कर दिवाली त्योहार मनाया जाता है

◆ राजा राम का अयोध्या लौटना –

दीवाली के साथ जुड़ी सबसे लोकप्रिय कथा राजा राम की है। उनकी पत्नी सीता का अपहरण करने वाले असुर राजा रावण को मारकर, और चैदह साल का वनवास बिताने के बाद दीवाली के दिन ही राम अयोध्या लौटे थे। अयोध्या में राम के घर लौटने की खुशी में लोगों ने अपने घरों को दीपों से रौशन किया और एक दूसरे को मिठाइयां बांटीं। यह त्यौहार मनाने वाले आज भी इस परंपरा को निभाते हैं।

◆ नर्कासुर की कथा –

इस पौराणिक कथा के अनुसार, दीवाली के दिन ही भगवान कृष्ण ने नर्कासुर का वध किया था। माना जाता है कि नर्कासुर को भगवान विष्णु से लंबे जीवन का वरदान प्राप्त था। उसने तीनों लोकों में उत्पात मचाना शुरु कर दिया और वह महिलाओं पर हमले करने लगा। कहा जाता है कि नर्कासुर ने भगवान कृष्ण से प्रार्थना की थी कि लोगों द्वारा उसकी मृत्यु को याद रखा जाना चाहिये इसलिए इस दिन को नर्कचतुर्दशी भी कहते हैं।

◆ देवी लक्ष्मी का अवतार-

इस पौराणिक कथा के अनुसार, देवी लक्ष्मी देवताओं और असुरों के बीच हुए समुद्र मंथन और उसमें से निकले अमृत पर अधिकार को लेकर हुई लड़ाई के समय प्रकट र्हुइं थीं। देवी लक्ष्मी ने अमृत देवताओं के अधिकार में दिया था।

◆ पांडवों की वापसी –

माना जाता है कि इस दिन पांडव अपने बारह सालों के वनवास के बाद अपनी राजधानी हस्तिनापुर लौटे थे। लोगों ने इस अवसर पर मिट्टी के दीये जलाए थे।

◆ बाली की पौराणिक कथा-

मान्यता है कि दीवाली के दिन ही भगवान विष्णु ने अपने वामन अवतार में अवतरित होकर राजा बाली को पाताल भेजा था। राजा बाली के बढ़ते प्रभाव और अहंकार के बाद भगवान विष्णु ने बाली से अपने तीन कदमों के नाप जितनी धरती मांगी। दो ही कदमों में पूरा स्वर्ग और धरती नापने के बाद बाली के कहने पर उन्होंने अपना तीसरा कदम उसके सर पर रखा और उसे पाताल भेज दिया।

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