DEVGARH DHAM AMBIKAPUR – आइये जानते हैं अम्बिकापुर से लगभग 45 किमी की दूरी पर स्थित पुरातात्विक एवं धार्मिक स्थल ‘देवगढ़ धाम’ के बारे में।

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DEVGARH DHAM AMBIKAPUR – आइये जानते हैं अम्बिकापुर से लगभग 45 किमी की दूरी पर स्थित पुरातात्विक एवं धार्मिक स्थल ‘देवगढ़ धाम’ के बारे में।

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DEVGARH DHAM AMBIKAPUR – देवगढ़, भारतीय इतिहास और परंपराओं का एक महत्त्वपूर्ण स्थल है। यह स्थान अपने नाम से ही देवों के निवास का गढ़ (घर) होने की संकेत करता है। इसे पुरातात्विक और धार्मिक महत्ता का केंद्र माना जाता है, जहां प्राचीन समय में अनेक ऋषि-मुनि अपना तपस्या और ध्यान का केंद्र बनाते थे।

DEVGARH DHAM AMBIKAPUR – का इतिहास गहरा और उसमें पौराणिक कई कथाएं जुड़ी हुई हैं। इसे जमदग्नि ऋषि और उनके पुत्र परशुराम जी के तपोभूमि के रूप में भी जाना जाता है। यहां उन्होंने अपने तपस्या और साधना का केंद्र बनाया था।

इस स्थान का प्राकृतिक सौंदर्य भी अद्भुत है। यहां की प्राकृतिक सुंदरता और पर्यावरणीय संरक्षण उसे और भी महत्त्वपूर्ण बनाता है। इस जगह पर विविध प्रकार के पौधे-पौष्टिक वनस्पति और वन्य जीवन भी पाया जाता है, जिससे यहां का परिसर और भी अनूठा और आकर्षक बनाता है।

देवगढ़ का महत्त्व धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि इसका प्राकृतिक संसाधनों और वन्य जीवन के संरक्षण में भी है। यहां के ऐतिहासिक महल, मंदिर और प्राचीन स्मारक इस स्थान को अनोखा बनाते हैं।

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DEVGARH DHAM AMBIKAPUR

DEVGARH DHAM AMBIKAPUR – इस स्थान की धरोहर और उसमें संदिग्धता भी होती है, जो विशेष रूप से ऐतिहासिक और पौराणिक कथाओं से जुड़ी होती है। इसे संरक्षित रखने और इसकी सुरक्षा के लिए सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों के प्रयास भी चल रहे हैं।

समाप्त करते समय, देवगढ़ एक स्थान है जो ऐतिहासिक, धार्मिक, और प्राकृतिक महत्ता का संगम है। यह एक स्थल है जो भारतीय संस्कृति और परंपराओं को महत्त्वपूर्ण रूप से दर्शाता है और अपनी प्राकृतिक समृद्धि के लिए भी प्रसिद्ध है।

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DEVGARH DHAM AMBIKAPUR – कहाँ है ?

DEVGARH DHAM AMBIKAPUR – छत्तीसगढ़ राज्य में स्थित है और इसका स्थान अम्बिकापुर जिले से लगभग 50 किलोमीटर और सूरजपुर से 40 किलोमीटर की दूरी पर है। यहां एक प्राचीन और धार्मिक स्थल के रूप में प्रसिद्ध होने के साथ-साथ, प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर एक स्थल है। यहां कई प्राचीन मंदिर और स्थानिक धार्मिक समुदायों के पूजा के स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त कर रहे हैं।

DEVGARH DHAM AMBIKAPUR – के पास कई प्राकृतिक स्थल हैं, जैसे कि घाटी, झरने, और वन्य जीवन। यहां के वन्य जीवन में भारी संख्या में विविध प्रजातियों के पक्षी और जानवर हैं। स्थानीय लोगों के लिए यह स्थान ध्यान और आत्मा को शांति देने वाला है।

इसके अलावा, DEVGARH DHAM AMBIKAPUR की प्राकृतिक सुंदरता और मान्यताओं के संयोजन से इसे पर्यटन का भी एक प्रमुख केंद्र माना जाता है। यहां के प्राकृतिक सौंदर्य, ऐतिहासिक महत्ता और धार्मिक महत्ता का संगम पर्यटकों को आकर्षित करता है।

DEVGARH DHAM AMBIKAPUR – वनवास के दौरान आए थे भगवान राम –

DEVGARH DHAM AMBIKAPUR – रेण नदी का किनारा एक प्राकृतिक अद्भुति से भरपूर होने के कारण यहां का वातावरण अत्यंत मनोहारी है। इस नदी के किनारे बसे इस स्थल को प्राकृतिक सौंदर्य से लबालब और आकर्षक बनाते हैं। भगवान श्री राम और माता सीता जी के 14 वर्षों के वनवास के दौरान, वे अपने वनगमन के दौरान रेण नदी के मार्ग से देवगढ़ पहुँचे थे। उस समय इस स्थान को “दंडकारण्य” के नाम से जाना जाता था।

DEVGARH DHAM AMBIKAPUR – रेण नदी ने इस स्थान को अपने सुंदर तटीय क्षेत्र और प्राकृतिक विशालता से सजाया है। यहां के वन्य जीवन, नदी की सुहावनी धारा, और प्राकृतिक वातावरण इस स्थल को एक प्रिय गणराज्य में बदल देते हैं।

दंडकारण्य का इतिहास भारतीय साहित्य और पौराणिक कथाओं के माध्यम से प्राचीनकाल से जुड़ा है। इस स्थल का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्त्व है, जो भारतीय समाज के लिए महत्त्वपूर्ण है।

रेण नदी के तटीय क्षेत्र में प्राकृतिक वन्य जीवन, पक्षियों का आवास, और मनोरम दृश्यों की व्यवस्था होने के कारण, यहां पर्यटकों की भी अधिक आकर्षण है। इसे दर्शनीय स्थलों में शामिल किया गया है और भारतीय संस्कृति का महत्त्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है।

इस रूप में, रेण नदी के किनारे स्थित दंडकारण्य स्थल का महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक, प्राकृतिक, और सांस्कृतिक महत्त्व है, जो भारतीय इतिहास और संस्कृति का अनमोल हिस्सा है।

DEVGARH DHAM AMBIKAPUR – प्राचीन शिवलिंग –

प्राचीन शिव मंदिर का इतिहास अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। यह मंदिर एक समय में भव्य था जिसमें 11 शिवलिंग थे, लेकिन वर्तमान में कुछ ही शिवलिंग बचे हैं। देवगढ़ में स्थित इस प्राचीन शिव मंदिर की नींव दसवी से ग्यारहवी शताब्दी के बीच रखी गई थी।

इस मंदिर के गर्भगृह में स्थित शिवलिंग के मध्य भाग पर मां पार्वती का आभास था, जो नारी रूप में अंकित था। इस कारण, इस मंदिर को अर्धनारीश्वर स्वरूप में भी जाना जाता है और इसे गौरी शंकर मंदिर भी कहा जाता है।

यह मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है, बल्कि इसकी स्थापना का समय और इसकी भव्यता भी इसे अनूठा बनाती है। इसकी विशेषता उस समय की संस्कृति, कला, और शैली को दर्शाती है।

DEVGARH DHAM AMBIKAPUR – इस मंदिर का अर्धनारीश्वर स्वरूप एक अनोखी पहचान है, जो दिव्यता और संगीतमयता का प्रतीक हो सकता है। यह ऐसे मंदिरों में से एक है जो अपने विशेष रूप और भव्यता के लिए प्रसिद्ध है।

इस मंदिर का अत्यंत महत्त्व इसे धार्मिक और सांस्कृतिक महत्त्व के साथ यौगिक स्थल के रूप में भी देखता है। यहां की वातावरणिक सुंदरता और ध्यान मंदिर को एक शांति और सकारात्मकता का केंद्र बनाती है।

ऐसे प्राचीन स्थलों का संरक्षण और संवर्धन अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। इन्हें सुरक्षित रखने से हम अपनी संस्कृति और धरोहर को सजीव रख सकते हैं। इन स्थलों का प्रचार-प्रसार और उन्हें पर्यटन स्थल के रूप में प्रोत्साहित करना भी महत्त्वपूर्ण है ताकि लोग इनकी महिमा को समझ सकें और इनका आनंद ले सकें।

इस प्राचीन शिव मंदिर का इतिहास, उसकी धार्मिक और सांस्कृतिक महत्त्वता, और उसकी भव्यता की धारा आज भी मानव जीवन को प्रेरित करती है। इसका संरक्षण और मानवीय संप्रेषण महत्त्वपूर्ण है ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी इस विरासत का आनंद ले सकें।

DEVGARH DHAM AMBIKAPUR – ऋषि यमदग्नि का है साधना स्थल –

देवगढ़, जिसे ऋषि यमदग्नि और उनके पुत्र परशुराम जी की साधना स्थली माना जाता है, एक प्राचीन और महत्त्वपूर्ण स्थल है। यह स्थल भारतीय सांस्कृतिक धरोहर में अत्यधिक महत्त्व रखता है।

रेण नदी, जिसका नाम परशुराम जी की माता रेणुका के नाम पर रखा गया है, इस क्षेत्र की एक प्रमुख नदी है। इस नदी को उनकी प्रतिष्ठा और महत्त्व के कारण यहां की संस्कृति और इतिहास में विशेष माना जाता है।

परशुराम जी के जीवन कथा में देवगढ़ का एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। उनके पिता यमदग्नि एक ऋषि थे और उनकी माता रेणुका नामक एक पतिव्रता और पवित्रा स्त्री थीं। परशुराम जी ने अपने परम पिता के अभिमान को संतुष्ट करने के लिए अनेक तपस्या और साधना की थी।

देवगढ़ में स्थित रेण नदी उन स्थलों में से एक है जहां परशुराम जी ने अपनी तपस्या की थी। इस नदी का नाम उनकी माता के नाम पर रखा गया था और यहां पर उन्होंने अपने आध्यात्मिक और धार्मिक साधनाओं में विशेषता प्राप्त की थी।

देवगढ़ का इतिहास और संस्कृति भारतीय सम्राटों, ऋषियों और धार्मिक संस्थाओं के संस्कारों और सांस्कृतिक यात्राओं से भरपूर है। यहां के ऐतिहासिक स्थल, नदियाँ और प्राचीन मंदिर इस क्षेत्र को अत्यंत रोमांचक बनाते हैं।

देवगढ़ की ऐतिहासिक महत्त्वपूर्णता और उसका संस्कृतिक धरोहर भारतीय सभ्यता के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह स्थान आध्यात्मिक दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि यहां पर ऋषि और संतों ने तपस्या और साधना में अपने मन को शुद्ध किया था।

इस प्रकार, देवगढ़, रेण नदी और परशुराम जी के संबंध एक ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण स्थलों को संदर्भित करते हैं जो भारतीय संस्कृति और इतिहास में अत्यधिक महत्त्व रखते हैं।

DEVGARH DHAM AMBIKAPUR – महाशिवरात्रि पर आयोजित होता है भव्य मेला –
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भारत में घने जंगलों की शानदार वातावरण के कारण कई स्थान प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर होते हैं। इन्हीं में से एक स्थान है जहां प्रति वर्ष बहुतायत में पर्यटक आते हैं। इस स्थान की प्राकृतिक सुंदरता और धार्मिक महत्त्व के कारण यहाँ का पर्यटन वर्ष भर जारी रहता है।

यहाँ प्रति वर्ष श्रावण माह के महीने में भगवान शिव को समर्पित एक धार्मिक आयोजन होता है, जिसमें शिवलिंग में जलाभिषेक करने के लिए श्रद्धालु दूर-दूर से आते हैं। इस धार्मिक उत्सव में हजारों लोग भाग लेते हैं और अपने आस्थानुसार पूजा अर्चना करते हैं।

DEVGARH DHAM AMBIKAPUR – साथ ही, महाशिवरात्रि और सावन माह में यहाँ भव्य मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें लाखों भक्तों की भीड़ दिखाई जाती है। इस अवसर पर लोग भगवान शिव की पूजा करने के लिए आते हैं और इस धार्मिक महोत्सव का आनंद लेते हैं।

इस स्थान का पर्यटन भी इसे एक विशेष स्थान बनाता है। घने जंगलों और प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर वातावरण ने इसे प्राकृतिक स्वर्ग के रूप में प्रस्तुत किया है। पर्यटक यहाँ विभिन्न प्रकार के अनुभवों का आनंद लेते हैं, जैसे कि जंगल सफारी, वन्य जीवन का दर्शन, तीर्थ यात्रा, और अन्य स्थानीय आकर्षण।

यहाँ का पर्यटन उन लोगों को खींचता है जो प्राकृतिक सौंदर्य और धार्मिक महत्त्व के साथ-साथ स्थानीय संस्कृति का भी अनुभव करना चाहते हैं।

DEVGARH DHAM AMBIKAPUR – इस प्रकार, यहाँ की प्राकृतिक सौंदर्य, धार्मिक महत्त्व और भौगोलिक स्थिति ने इसे एक पर्यटन गतिविधि का केंद्र बना दिया है और यहाँ के पर्यटन में समृद्धि और विकास का मार्ग प्रशस्त किया है।