RASHTRAPATI BHAVAN PANDONAGAR – आइये जानते हैं छ:ग के राष्ट्रपति भवन के बारे में….क्या है खास और इसे क्यों कहा गया दूसरा राष्ट्रपति भवन।

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RASHTRAPATI BHAVAN PANDONAGAR – छत्तीसगढ़ में स्थित दूसरे राष्ट्रपति भवन की कहानी बेहद रोचक है। प्रदेश के सूरजपुर जिले के पंडोनगर में स्थित यह 70 साल पुराना है और यह भवन वास्तव में एक गाँवी मिट्टी की झोपड़ी की तरह बना हुआ है, जिसमें एक कमरा और छोटा सा आंगन है।

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इसकी छत पर छप्पर पड़ा है और आसपास कुछ पेड़-पौधे हैं। यहां कोई आलिशान बिल्डिंग नहीं है, न ही सुरक्षाकर्मी तैनात हैं। तथापि, इस आम दिखने वाले भवन के पीछे एक महत्त्वपूर्ण कहानी छिपी है।

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RASHTRAPATI BHAVAN PANDONAGAR – यह भवन एक समर्थ और समाजसेवी व्यक्ति, चंदूलाल चउधरी, द्वारा बनाया गया था। चंदूलाल ने अपनी छत्तीसगढ़ी संस्कृति को महत्त्व देते हुए इस भवन का निर्माण किया था। इसे वे दूसरा राष्ट्रपति भवन कहते थे क्योंकि वे आत्मनिर्भरता, सामूहिक सहयोग, और सामाजिक एकता के सिद्धांतों का पालन करते थे।

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चंदूलाल चउधरी की मृत्यु के बाद भी, इस भवन को उनकी यादों और संदेश को जीवंत रखने के लिए संगठनों ने इसे संरक्षित रखा। यहां प्रतिवर्ष 3 दिसंबर को, प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद की जयंती पर भव्य आयोजन होता है जिसमें लोग चंदूलाल की याद में इस भवन को संदर्भित करते हैं।

RASHTRAPATI BHAVAN PANDONAGAR – दूसरे राष्ट्रपति भवन का महत्त्व इसमें नहीं है कि यह एक भव्य और सुंदर इमारत है, बल्कि इसका महत्त्व उस संदेश में है जो यह भवन साझा करता है – सामूहिकता, सामाजिक समरसता, और आत्मनिर्भरता की भावना।

यह भवन अपनी सीमित संसाधनों के बावजूद एक महत्त्वपूर्ण संदेश लेकर आता है जो हर किसी को समझना चाहिए।

RASHTRAPATI BHAVAN PANDONAGAR – क्यों कहा जाता है इसे राष्ट्रपति भवन –

डॉ. राजेंद्र प्रसाद का यह गांव और उनके इस भवन में रात बिताने का संबंध भारतीय इतिहास के महत्वपूर्ण पलों में से एक है। 1952 में जब वे सूरजपुर के इस गांव में आए, तो महाराजा रामानुज शरण सिंह देव के साथ रहे। उस समय, डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने इस भवन में रात बिताई और एक फोटो भी खींचवाई, जो आज भी उसी स्थान पर मौजूद है।

इस घर के महत्व को देखते हुए इसे “राष्ट्रपति भवन” के रूप में जाना जाने लगा। RASHTRAPATI BHAVAN PANDONAGAR – यहाँ के बुजुर्गों के अनुसार, डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने यहाँ दो पेड़ भी लगाए थे, और उनमें से एक पेड़ आज भी यहाँ मौजूद है।

इस भवन और उसके चारों ओर के इतिहास का आधार बनकर, यहाँ के लोग डॉ. राजेंद्र प्रसाद के आगमन को याद करते हैं और इसे उनके महत्वपूर्ण संदेश का प्रतीक मानते हैं। इस स्थान का इतिहास आज भी लोगों को इस महान व्यक्तित्व के साथ जोड़ता है और उन्हें एक गहरा संबंध महसूस कराता है।

डॉ. राजेंद्र प्रसाद का यह छोटा सा गांव उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं को दर्शाता है। उन्होंने जहां देश के सशक्तिकरण में अहम भूमिका निभाई, वहीं अपने इस साधन से भी जुड़े रहे और सराहनीय संस्कृति को आगे बढ़ाने का प्रयास किया।

RASHTRAPATI BHAVAN PANDONAGAR – इस गांव की धरोहर और डॉ. राजेंद्र प्रसाद के यहाँ के यात्रा से जुड़े तथ्यों को याद रखकर, हम उनके योगदान को समझ सकते हैं और उनके जीवन के महत्वपूर्ण संदेशों को निभा सकते हैं। उनका संदेश और उनकी दृष्टि के साथ जुड़ा यह इतिहासी स्थल आज भी लोगों को प्रेरित करता है।

इस तरह, डॉ. राजेंद्र प्रसाद के इस गांव में आगमन ने इस स्थान को एक ऐतिहासिक महत्ता प्रदान की है जो आज भी लोगों के दिलों में बसा हुआ है।

RASHTRAPATI BHAVAN PANDONAGAR – पंडो समाज को राजेन्द्र प्रसाद ने लिया था गोद –

डॉ. राजेंद्र प्रसाद, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान नेता और भारतीय गणराज्य के प्रथम राष्ट्रपति थे। उनका सेवानिवृत्ति के बाद एक समय मिट्टी की झोपड़ी में रहना उनकी विचारधारा और सेवा के प्रति निष्ठा का प्रतीक बन गया था।

डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने अपने जीवनकाल में देशभर में यात्राएँ की और अनेक अनजाने क्षेत्रों में भारतीय जनता की स्थिति को समझने का प्रयास किया। उनकी एक ऐतिहासिक यात्रा उन्हें एक ऐसे समुदाय से मिलाया जिसे समाज में उन्होंने समझा और उनकी मदद करने का संकल्प किया।

RASHTRAPATI BHAVAN PANDONAGAR – उन्होंने झोपड़ी में रह रहे पंडो जनजाति के लोगों की स्थिति देखकर उनकी जीवनशैली, संकट और असहायता को समझा। डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने उन्हें न केवल ध्यान दिया बल्कि अपने प्रयासों से उन्हें समाज में समाहित किया।

उन्होंने सरकारी स्तर पर इस जनजाति के लोगों के लिए विशेष संरक्षा की मांग की और इसे आरक्षित जाति का दर्जा दिलाया। इससे न केवल उन्हें समाज में सम्मान मिला, बल्कि इसे नेतृत्व, शिक्षा और विकास की दिशा में आगे बढ़ाने का मौका मिला।

उन्हें “राष्ट्रपति का दत्तक पुत्र” कहा जाता है क्योंकि उन्होंने अपने लोकप्रियता और संघर्ष के माध्यम से इस जनजाति को समाज में सम्मान प्राप्त कराया। उनका संघर्ष न केवल इस समुदाय के लिए बल्कि समाज के लिए एक मिसाल बना।

RASHTRAPATI BHAVAN PANDONAGAR – डॉ. राजेंद्र प्रसाद के प्रयासों से यह संदेश जुड़ा है कि हमें समाज में समरसता और समानता के लिए संघर्ष करना चाहिए। उनके कार्यों ने उन्हें न केवल भारतीय इतिहास में महत्त्वपूर्ण बना दिया है, बल्कि उनका प्रेरणास्त्रोत भी बना है जो समाज में समानता और न्याय के लिए संघर्ष करते हुए आगे बढ़ता है।

RASHTRAPATI BHAVAN PANDONAGAR – डॉ राजेन्द्र प्रसाद का धूमधाम से मनाया जाता है जन्मदिवस –

डॉ. राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर 1884 को हुआ था। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाई और भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने जनजातियों के हक के लिए संघर्ष किया और उन्हें समाज में समानता की दिशा में कदम बढ़ाने में मदद की।

RASHTRAPATI BHAVAN PANDONAGAR – उनका योगदान भारतीय राजनीति में अटूट है। डॉ. राजेंद्र प्रसाद की जयंती को पंडो जनजाति के लोग एक त्योहार की तरह मनाते हैं, जो उनके महान कार्यों को सम्मानित करते हैं और उनकी याद को याद करते हैं।